आखिर
वही हुआ, जिसका डर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पार्टी हाईकमान को दिखाया
था और जिसके बाद हाईकमान ने भी अपनी नीति को 'माइल्ड' किया था. लेकिन
माइल्ड होने के बावजूद बीजेपी के सामने बवंडर बड़ा खड़ा हो गया है. टिकटों
की पहली लिस्ट बाहर आते ही चारों तरफ एक ही चीज नजर आ रही है और वो है
बगावत. इस बगावत का झंडा वे लोग उठाए हुए हैं, जिनका टिकट कटा है. विरोध के
सुर उन लोगों के भी हैं, जिनके राजनीतिक दुश्मन को टिकट मिल गया है.
बीजेपी
ने अपनी पहली लिस्ट में 131 नामों की घोषणा की है. इनमें 23 सीटों पर
मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए गए हैं. हालांकि पहले माना जा रहा था कि
पार्टी कहीं ज्यादा संख्या में नए चेहरों पर दांव आजमाएगी. लेकिन इस नीति
पर विरोध की आशंका हावी रही. हालांकि कम संख्या के बावजूद बवाल कम नहीं है.
बवाल करने वालों में मौजूदा मंत्री से लेकर पूर्व महामंत्री तक शामिल हैं.
दूसरी लिस्ट आने के बाद संख्या और ज्यादा बढ़ने की आशंका है.
मंत्री-महामंत्री सब जुटे 'सबक' सिखाने में
टिकट
की पूरी कवायद दिल्ली में चलने की वजह से जयपुर का पार्टी दफ्तर सूना नजर आ
रहा था. लेकिन अब यहां विरोध में नारेबाजी और प्रदर्शन करने वालों की भीड़
को देखा जा सकता है. अभी तक सबसे बड़ा नाम पीएचईडी मंत्री सुरेंद्र गोयल
का है. गोयल पाली जिले के जैतारण से 5 बार विधायक रह चुके हैं. गोयल ने
पार्टी और पद से इस्तीफा देकर निर्दलीय लड़ने का ऐलान कर दिया है. उनके साथ
कई पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने भी इस्तीफा दे दिया है. वैसे, पार्टी
के अंदरूनी सर्वे में उनकी हार दर्शाई गई थी.
कोटा
की रामगंज मंडी सीट से इस बार संघ के चहेते मदन दिलावर को 10 साल बाद टिकट
दिया गया है. वे वसुंधरा की गुड बुक्स में नहीं आते थे. यहां से मौजूदा
विधायक चंद्रकांता मेघवाल ने निर्दलीय के रूप में दो-दो हाथ करने का ऐलान
कर दिया है. इसी तरह किशनगढ़ से भागीरथ चौधरी, डूंगरपुर से देवेंद्र कटारा,
सागवाड़ा से अनीता कटारा और सादड़ी से गौतम दक भी पार्टी के खिलाफ हो चुके
हैं.
जयपुर जिले की विराटनगर सीट से पूर्व
महामंत्री कुलदीप धनखड़ ने पार्टी छोड़ दी है. पार्टी ने यहां से मौजूदा
विधायक डॉ फूलचंद भिण्डा पर ही भरोसा जताया तो धनखड़ ने समर्थकों के साथ
फूल को 'कुचल' डालने का ऐलान कर दिया. नागौर विधायक हबीबुर्रहमान ने भी
टिकट कटने के बाद हाथ के साथ जाने के संकेत दिए हैं.
'सबका साथ..' में मुस्लिम क्यों नहीं ?
पूरे
उत्तर भारत में बीजेपी के पास सिर्फ 2 मुस्लिम विधायक हैं. दोनों ही
पश्चिम राजस्थान से हैं. नागौर से हबीबुर्रहमान और डीडवाणा से मौजूदा
परिवहन मंत्री और सरकार में नंबर 2 कहे जाने वाले यूनुस खान. लेकिन हैरानी
की बात है कि जहां पहली लिस्ट में युनूस खान का नाम ही नहीं है, वहीं
हबीबुर्रहमान का टिकट काट दिया गया है.
बताया जा
रहा है कि जिस तरीके से वसुंधरा राजे ने यूनुस खान का कद बढ़ाया है, उससे
संघ में पहले से नाखुशी है. इसी वजह से पहली लिस्ट में खान पर सस्पेंस छोड़
दिया गया है. सूत्र ये भी बताते हैं कि खुद खान ही इस बार एंटी इनकंबैंसी
फैक्टर के चलते सीट बदलने की फिराक में हैं. अभी तक उनकी तरफ से कोई
प्रतिक्रिया नहीं आई है. लिहाजा अब देखने वाली बात ये है कि उनकी सीट बदली
जाती है या टिकट ही काट दिया जाता है.
'सबका साथ,
सबका विकास' का नारा देने वाली पार्टी की लिस्ट में एक भी मुस्लिम का नाम न
होना बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है. खुद बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के
पदाधिकारियों ने मुस्लिमों के साथ ऐसे बर्ताव पर सवाल उठाए हैं. मोर्चा के
उपाध्यक्ष एम सादिक खान ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर
पूछा है कि एक भी मुस्लिम को टिकट न मिलने के बाद वे किस मुंह से
मुसलमानों के बीच वोट मांगने जाएं ?
और बढ़ सकती है बगावत !
अभी
तो पहली लिस्ट जारी हुई है और 69 नाम अभी बाकी हैं. आशंका है कि दूसरी
लिस्ट के बाद बागियों की संख्या में और ज्यादा बढ़ोत्तरी होगी. पहली लिस्ट
में जयपुर के मालवीय नगर से मौजूदा चिकित्सा मंत्री कालीचरण सराफ, झोटवाड़ा
से उद्योग मंत्री राजपाल सिंह शेखावत और चुरू की रतनगढ़ सीट से देवस्थान
मंत्री राजकुमार रिणवां का भी नाम नहीं है. इनका रिपोर्ट कार्ड भी पॉजिटिव
नहीं बताया गया है.
राजकुमार रिणवां समर्थकों ने
तो टिकट कटने की आशंका में अभी से बवाल काटना शुरू कर दिया है. सोशल मीडिया
पर चल रहे कैंपेन में रिणवां समर्थकों ने बीजेपी की ईंट से ईंट बजा देने
का दावा कर दिया है. उधर, सीकर की खंडेला सीट से चिकित्सा राज्यमंत्री
बंशीधर बाजिया को फिर से टिकट मिलने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं ने नाखुशी
जताई है. बाजिया को 'इनएक्टिव' करार दे रहे कार्यकर्ताओं ने हराने का ऐलान
कर दिया है.
मेवाड़ संभाग का भी यही हाल है.
उदयपुर सीट से गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया संघ के चहेते हैं. लेकिन उन्हे
फिर से टिकट दिए जाने के बाद कार्यकर्ताओं के एक गुट में और जनता सेना के
नाम से अलग संगठन बना चुके रणधीर सिंह भिंडर के साथ-साथ खुद कटारिया के
समधी भी उनके विरोध में उठ खड़े हुए हैं. जयपुर ग्रामीण लोकसभा की बची हुई
सीटों मसलन कोटपूतली, जमवा रामगढ़ पर भी पार्टी को भारी बगावत का अंदेशा
है.
एक दूसरे की 'डोरबेल' बजा रहे नेतागण
आमेर
से विधायक नवीन पिलानिया ने मायावती के हाथी की सवारी को मुफीद समझा है.
पिछली बार वे डॉ किरोड़ी लाल मीणा की आरजेपी से चुने गए थे. लेकिन डॉ साब
ने अपनी बनाई पार्टी छोड़कर बीजेपी जॉइन कर ली. लिहाजा मीणा वोटबैंक से
समर्थन की नाउम्मीदी में पिलानिया आमेर में नई सोशल इंजीनियरिंग गढ़ने की
कोशिश में हैं. हालांकि ये देखने वाली बात होगी कि 2013 में उनसे 329 वोट
से हारे बीजेपी के सतीश पूनिया के सामने ये सोशल इंजीनियरिंग कितनी कारगर
होगी.
चुरू लोकसभा से 2014 में हाथी पर सवार होकर
3 लाख से ज्यादा वोट हासिल करने वाले अविनेश महर्षि ने फूल को नहीं चुनने
की भूल सुधार ली है. वे बीजेपी में आ गए हैं और रतनगढ़ से टिकट के प्रबल
दावेदार हैं. मंत्री राजकुमार रिणवां की आशंका की वजह यही है. अगर महर्षि
टिकट की 'डील' के बाद पार्टी में आए हैं तो फिर रिणवां का क्या होगा ?
बताया
जा रहा है कि बाड़मेर में भी मौजूदा सांसद कर्नल सोनाराम को टिकट इसी वजह
से दिया गया है. उनके बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में जाने की चर्चा थी. यहां
पहले से ही जसवंत सिंह जसोल के परिवार के कांग्रेस में चले जाने से बीजेपी
को तगड़ा नुकसान हुआ है.
डैमेज कंट्रोल में जुटी पार्टी
बहरहाल,
पार्टी को बगावत का अंदेशा पहले से ही था. इसी डर के चलते पहले जहां 100
विधायकों के टिकट काटे जाने की चर्चा थी, वो गिरकर 2 दर्जन सीटों पर सिमट
गई है. शुरुआती बगावत को देखते हुए पार्टी तुरंत डैमेज कंट्रोल में भी जुट
गई है. सोमवार शाम को मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बंगले पर हुई कोर कमेटी
की बैठक में इसी मुद्दे पर चर्चा हुई.
लेकिन
मामला इतनी आसानी से सुलझने वाला लग नहीं रहा है. इस बार वैसे ही बीजेपी को
सत्ता बचाए रखने के लिए नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं. अभी तक के तमाम
ओपिनियन पोल बीजेपी की स्पष्ट हार का संकेत कर रहे हैं. हालांकि पिछले एक
महीने में कांग्रेस के सामने बीजेपी ने अपनी स्थिति कुछ मजबूत की है. लेकिन
ये इतनी नहीं है कि हार से पार पाई जा सके.
ऊपर
से बागियों का खतरा बची-खुची इज्जत को और ज्यादा डैमेज कर सकता है. अभी तक
'पार्टी विद डिफरेंस' का नारा देने वाली बीजेपी में अब कांग्रेस कल्चर कोई
छिपी बात नहीं रह गई है. अपने ही नेताओं की बगावत पार्टी को दर्जनों सीटों
का नुकसान करा सकती है. अगर बागियों ने हर सीट पर 5-10 हजार वोट भी काटे तो
बीजेपी के आधिकारिक उम्मीदवार को जीत के लाले पड़ सकते हैं. हालांकि
पार्टी के लिए राहत की उम्मीद सिर्फ यही है कि कांग्रेस की लिस्ट आने पर
ऐसी ही बगावत वहां भी होने की उम्मीद है.
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