जोधपुर। दीपावली के त्यौहार को लेकर एक ओर जहां प्रदेशभर में उत्साह के साथ लोग खरीदारी कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर सदियों से मिट्टी के दिये बनाने वाले कुम्हार समाज के लोग आज भी अंधकार में जीवन जीने को मजबूर हैं। जिस प्रकार कुम्हार समाज ने मिट्टी के दिये बनाना शुरू किया। उन्हीं मिट्टी के दीयों से लक्ष्मी माता का पूजन होता है। मगर एक सच्चाई ये भी है कि लक्ष्मी इन कुम्हार समाज के लोगों पर मेहरबान नहीं होती और आधुनिकता की मार झेल रही कुम्हारों की कला अब नाम मात्र की बची हुई है। कुम्हार समाज के लोगों को दीपावली का खास इंतजार रहता है। जैसे-जैसे त्योहार नजदीक आ रहा है और चाक की गति भी तेज हो गई है। कहते हैं कि मिट्टी का कोई मोल नहीं होता, मोल होता है, उससे गाड़ी जाने वाली चीजों का। दीपावली पूजन की संस्कृति और रिवाज मिट्टी से बने दीपकों और मूर्तियों के बिना अधूरे हैं।
इनकों गढ़ने में लगा कुम्हार समाज मिट्टी के मोल को लेकर खासा परेशान है। कुम्हारों को गांवों से महंगे दामों में मिट्टी खरीदनी पड़ रही हैं। लेकिन इसके बावजूद दीपावली के त्योहार की रौनक कम नहीं हो जाए। इसलिए चाक और हाथ दोनों ने रफ्तार पकड़ ली है। इस उम्मीद के साथ कि लोगों के घर इनके दीपकों से रोशन होंगे तो उनके घर में भी रौनक बनी रहेगी। इन दिनों हर तरफ मिट्टी से दीपक, लक्ष्मी, गणेश की मूर्तियां आदि तैयार करने का काम जोर शोर से चल रहा है। बाहर से लाई गई मिट्टी का पहले महीन चूरा किया जाता है।
इसे पानी में कई घंटों तक रौंदा जाता है, फिर इसे कई घंटों तक भिगोया जाता है। इसके बाद इसे गूंथ कर चाक पर चढ़ाया जाता है और कुशल हाथों से इसे दीपक, कलश, गमले, गुल्लक आदि का रूप दिया जाता है। इन कच्चे बर्तनों को कुछ समय धूप में सुखाया जाता है। इसके बाद.....Read More
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