दरगाह की दहलीज पर जले दिवाली के दिए

झुंझुनूं दरगाह की दहलीज पर दिवाली के दीपक जी, हां अब हम बात करेंगे कौमी एकता और सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश देने वाली दिवाली की। खबर झुंझुनूं से है। जहां पर दरगाह की चौखट दिवाली के दिन मिट्टी से बने दीपों की रोशनी से जगमगाती है और साथ में ही होती है आतिशबाजी भी।
ये दिवाली की खुशियां कहीं ओर नहीं बल्कि बिखर रही है एक दरगाह में यह दरगाह है झुंझुनूं में जिसका नाम है कमरूद्दीन शाह दरगाह। जहां पर ना केवल दिवाली, बल्कि ईद भी हिंदु मुस्लिम भाई एक साथ मनाते है। यह पुरानी परंपरा है। जो यहां के लोग आज भी निभाते आ रहे है। दरगाह में ना केवल सजावट होती है, बल्कि रंग रोगन का काम भी होता है। दरगाह में दीए जलाने के साथ-साथ आतिशबाजी की जाती है। साथ मिठाई खिलाकर एक-दूसरे को बधाई भी दी जाती है।
कमरूद्दीन शाह दरगाह के गद्दीनसीन एजाज नबी बताते है कि इस दरगाह से सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश आज का नहीं, बल्कि सदियों पुराना है। करीब 250 साल पहले सूफी संत कमरूद्दीन शाह हुआ करते थे। जिनकी संत चंचलनाथ जी के साथ गहरी दोस्ती थी। दोनों मिलने के लिए जब दरगाह और आश्रम से निकलते थे तो एक गुफा के जरिए मिलते थे। यही नहीं दोनों का एक ही संदेश था। झुंझुनूं में सांप्रदायिक सौहार्द और कौमी एकता बनी रहे।
दरगाह के गद्दीनशीन एजाज नबी ने बताया कि सूफीज्म की खासियत है कि पहले इंसानियत और बाद मेें धर्म। इन्हीं शब्दों को झुंझुनूं के लोगों ने अपने दिलों में बसा रखा है। यही कारण है कि दीपावली पर दरगाह में दीपों की रोशनी होती है तो ईद भी दोनों धर्म के लोगों मिल जुलकर मनाते है। कमरूद्दीन शाह और चंचलनाथ महाराज ने जो परंपरा 200-250 साल पहले शुरू की थी। वो आज भी जारी है। साथ ही हिंदु मुस्लिम एकता, भाईचारा और सौहार्द आज भी जिंदा है। इसका संदेश पूरे देश में हैं। 
ऐसा नहीं है कि यह संदेश केवल दीवाली या फिर ईद से ही इस दरगाह से निकलता है। बल्कि हर कार्यक्रम में ऐसा संदेश देने की कोशिश भी होती है और वो पूरी भी हो रही है। खास बात यह है कि जब दरगाह में उर्स होता है तो वहां पर कव्वाली के साथ भजन भी गाए जाते है तो उर्स की सबसे बड़ी रस्म फातिहा में विभिन्न दरगाह के गद्दीनशीन के अलावा आश्रमों के महंत भी हिस्सा लेते है और अमन चैन की दुआ करते है। यही कारण है कि चाहे 1947 के दंगे हो या फिर 1992 का तनावपूर्ण माहौल। झुंझुनूं की शांति, अमन और चैन को कभी टस से मस नहीं कर सका।
दिवाली जैसे त्यौहार दरगाह में मनाने पर हिंदु समुदाय की युवा पीढी में भी खुशी है कि उन्हें ऐसे संस्कार मिल रहे है। जो आज के वक्त मेें पूरे देश के लिए मिसाल है। युवा कार्यकर्ता दिनेश सुंडा ने बताया कि दिवाली को दरगाह में मनाने के लिए सभी उत्सुक रहते है और इस खास पल का भी इंतजार करते है। उन्होंने बताया कि जब दोनों समुदाय के बच्चे एक साथ पटाखे चलाते और दीपक जलाते हुए देखते है तो हमारी अखंड भारत.......Read More

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